Discussion on 'Promotion of Local and regional Language' in hindi speech स्थानीय और क्षेत्रीय भाषा के बीच अंतर

परिचय

आधुनिक अर्थ में देशी भाषा से आशय देश में प्रचलित उन भाषाओं में से किसी एक से है जिनका उद्गम एवं विकास प्राकृत अथवा अपभ्रंश से हुआ हो अथवा जिनका उद्भव स्थानीय बोलियों के आधार पर प्रायः स्वतंत्र रूप से हुआ हो। भारतीय संविधान के अनुसार भारत में इस तरह की बीसों देशी भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है। इनमें से हिंदी, मराठी, गुजराती, बांग्ला, उडि़या आदि प्रथम (आर्यभाषाओं के) वर्ग में तथा तमिल, तेलुगु, कन्नड़ आदि द्वितीय (द्राविड़) वर्ग में आती हैं।

भारत विविध संस्कृति और भाषा का देश रहा है। साल 1961 की जनगणना के अनुसार भारत में 1652 भाषाएं बोली जाती हैं। हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में फिलहाल 1365 मातृभाषाएँ हैं, जिनका क्षेत्रीय आधार अलग-अलग है।

भाषायी नृवविज्ञान

भाषायी मानवविज्ञान मानवशास्त्र की एक महत्वपूर्ण शाखा है। इसमें वैसी भाषाओं का अध्ययन किया जाता है जो अभी भी अलिखित हैं। ऐसी भाषा को समझने के लिए शब्दकोश व व्याकरण का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। शोधकर्ता को भाषा का अध्ययन करके शब्दकोश व व्याकरण तैयार करना पड़ता है। इसमें भाषाओं की उत्पत्ति, उद्विकास व विभिन्न समकालीन भाषाओं के बीच अंतरों का अध्ययन किया जाता है। मानवविज्ञान की शाखा के रूप में भाषायी मानवविज्ञान अपने आप में पूर्ण एवं स्वायत्त है। संस्कृति का आधार भाषा है। भाषा का अध्ययन कर हम संस्कृति को समझ सकते हैं।

वर्तमान स्थिति

भारतीय संविधान निर्माताओं की आकांक्षा थी कि स्वतंत्रता के बाद भारत का शासन अपनी भाषाओं में चले ताकि आम जनता शासन से जुड़ी रहे और समाज में एक सामंजस्य स्थापित हो और सबकी प्रगति हो सके। इसमें कोई शक नहीं कि भारत प्रगति के पथ पर अग्रसर है, परंतु यह भी सच है कि इस प्रगति का लाभ देश की आम जनता तक पूरी तरह पहुंच नहीं पा रहा है। इसके कारणों की तरफ जब हम दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि शासन को जनता तक उसकी भाषा में पहुंचाने में अभी तक कामयाबी नहीं मिली हैं, यह एक प्रमुख कारण है। जब तक इस काम में तेजी नहीं आती तब तक किसी भी क्षेत्र में देश की बड़ी से बड़ी उपलब्धि और प्रगति का कोई मूल्य नहीं रह जाता। अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर अंग्रेजी के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। किन्तु वैश्विक दौड़ में आज हिन्दी कहीं भी पीछे नहीं है। यह सिर्फ बोलचाल की भाषा ही नहीं, बल्कि सामान्य काम से लेकर इंटरनेट तक के क्षेत्र में इसका प्रयोग बखूबी हो रहा है। बावजूद इसके हिन्दी भाषा अभी भी भारत के हर क्षेत्र में विद्यमान नहीं है। इसके अलावा क्षेत्रीय भाषाओं की स्थिति भी अपेक्षानुरूप नहीं है।

उल्लेखनीय है कि भारत में 29 भाषाएं ऐसी हैं जिनको बोलने वालों की संख्या 1000000 (दस लाख) से ज्यादा है। भारत में 7 ऐसी भाषाएं बोली जाती हैं जिनको बोलने वालों की संख्या 1 लाख से ज्यादा है। भारत में 122 ऐसी भाषाएं हैं जिनको बोलने वालों की संख्या 10000 (दस हजार) से ज्यादा है।

2011 की जनगणना में भारतीयों भाषाओं के आंकड़ों के मुताबिक, 43.63 फीसदी लोगों की मातृभाषा हिंदी है। 2001 में 41.03 फीसदी लोगों की मातृभाषा हिन्दी थी। इस तरह 2001 से 2011 के बीच देश में हिन्दी बोलने वाले लोगें की संख्या ढाई फीसदी से ज्यादा बढ़ी है।

दूसरे नंबर पर बंगाली (बांग्ला) भाषा बरकरार है। वहीं, तेलुगू को पीछे छोड़कर मराठी तीसरे नंबर पर बोले जाने वाली भाषा हो गई है। 2011 की जनगणना के आंकड़े के अनुसार, गैर-अनुसूचित भाषाओं में लगभग 2.6 लाख लोगों ने अंग्रेजी को अपनी मातृभाषा बताया। इनमें से सबसे अधिक 1.06 लाख लोग महाराष्ट्र में हैं। तमिलनाडु और कर्नाटक अंग्रेजी बोलने के मामले में क्रमशः दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं।

वहीं, देश में सूचीबद्ध 22 भाषाओं में संस्कृत सबसे कम बोली जाने वाली भाषा है। भारत की इस सबसे पुरानी भाषा को केवल 24,821 लोगों ने अपनी मातृभाषा बताया है। इसे बोलने वाले लोगों की संख्या बोडो, मणिपुरी, कोंकणी और डोगरी भाषा बोलने वाले लोगों से भी कम है।

राजस्थान में बोली जाने वाली भिली/भिलौड़ी भाषा 1.04 करोड़ की संख्या के साथ गैर-सूचीबद्ध भाषाओं में पहले नंबर पर है, जबकि दूसरे स्थान पर रहने वाली गोंडी भाषा बोलने वालों की संख्या 29 लाख है।

2001 की जनगणना के मुकाबले 2011 में भारत में बांग्ला को मातृभाषा बताने वाले लोगों की संख्या 8.11 से बढ़कर 8.3 फीसदी हो गई है। वहीं मराठी भाषा बोलने वालों की संख्या 2001 में 6.99 फीसदी से बढ़कर 2011 में 7.09 फीसदी हो गई है, जबकि इस दौरान तेलुगू भाषा बोलने वाले 7.19 फीसदी से घटकर 6.93 फीसदी रह गए हैं।


इस मामले में उर्दू सातवें नंबर पर पहुंच गई है, जबकि 2001 में यह छठी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा थी। वहीं दूसरी ओर, देश में गुजराती बोलने वालों की संख्या बढ़ी है। इस मामले में इसने उर्दू को पीछे छोडते हुए छठा स्थान पा लिया है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में 4.74 फीसदी लोग गुजराती बोलते थे। 2011 की जनगणना के मुताबिक, जहां देश की 96.71 फीसदी आबादी ने 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक को अपनी मातृभाषा के रूप में चुना है वही 3.29 फीसदी ने अन्य भाषाओं को अपनी मातृभाषा बताया है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्व में बोली जाने वाली कुल भाषाएं लगभग 6900 हैं। इनमें से 90 फीसद भाषाएं बोलने वालों की संख्या एक लाख से कम है। दुनिया की कुल आबादी में तकरीबन 60 फीसद लोग 30 प्रमुख भाषाएं बोलते हैं, जिनमें से दस सर्वाधिक बोली जानी वाली भाषाओं में जापानी, अंग्रेजी, रूसी, बांग्ला, पुर्तगाली, अरबी, पंजाबी, मंदारिन, हिंदी और स्पैनिश है। दुनिया में अगले 40 साल में चार हजार से अधिक भाषाओं के खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है।

एथनोलॉग कहता है कि आज दुनिया में लगभग 7000 से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं। इनमें से लगभग एक तिहाई लुप्तप्राय हैं। दुनिया की आधी से अधिक आबादी केवल 23 भाषाएं बोलती है।यूनेस्को के अनुसार, पिछली सदी में लगभग 600 भाषाएं गायब हो गई हैं और वे हर दो सप्ताह में एक भाषा की दर से गायब होती रहती हैं। यदि वर्तमान रुझान जारी रहा तो इस सदी के अंत से पहले दुनिया की 90 प्रतिशत भाषाओं के गायब होने की संभावना है।

कुछ प्रमुख तथ्य

प्रशांत द्वीप के राष्ट्र पापुआ न्यू गिनी में दुनिया की सबसे अधिक स्वदेशी भाषाएँ (840) बोली जाती हैं, जबकि भारत 453 भाषाओं के साथ चौथे स्थान पर है। कई भाषाएँ अब लुप्तप्राय (Endangered) हैं और कई भाषाएँ जैसे- तिनिगुआन (कोलम्बियाई मूल) बोलने वाला केवल एक ही मूल वत्तफ़ा बचा है।

नृवंश-वविज्ञान (Ethnologue) जो भाषाओं की एक निर्देशिका है, में दुनिया भर की 7,111 ऐसी भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है जो अभी भी लोगों द्वारा बोली जाती हैं। चीनी, स्पेनिश, अंग्रेजी, हिंदी और अरबी दुनिया भर में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाएँ हैं। दुनिया भर में 40% से अधिक लोगों द्वारा इन भाषाओं को बोला जाता है।

अमेरिका में 335 भाषाएँ और ऑस्ट्रेलिया में 319 भाषाएँ बोली जाती हैं, ये व्यापक रूप से अंग्रेजी बोलने वाले देश हैं। एशिया एवं अफ्रीका में सबसे अधिक देशी भाषाएँ (कुल का लगभग 70%) बोली जाती हैं। सामान्यतः एक देश में सभी की मातृभाषा एक ही होती है लेकिन देश में स्थानीय लोगों द्वारा विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं, इसका तात्पर्य यह है कि देश भर में अधिक भाषाओं का प्रसार किया जाए। नृवंश- विज्ञान (Ethnologue) के अनुसार, 3,741 भाषाएँ ऐसी हैं, जिसे बोलने वाले 1,000 से भी कम हैं। कुछ परिवारों में ही कई भाषाएँ बोली जाती हैं, हालाँकि इनका प्रतिशत बहुत ही कम है।

भाषा के विलुप्ति का कारण

किसी भी देश या समाज की मूलभाषा या स्थानीय भाषा के विलुप्त होने के कई कारण हैं जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं के तहत देख सकते हैं-

पलायनः जब कोई जनसंख्या अपने मूल निवास स्थान को छोड़कर कहीं और पलायन करती है, चाहे वह प्राकृतिक (बाढ़, सूखा, अकाल, महामारी आदि) हो या फिर मानवीय (शहरीकरण, औद्योगिकीकरण आदि) तब उस मूल जनसंख्या की अपनी जो भाषा होती है वह काफी हद तक परिवर्तित हो जाती है क्योंकि वह आबादी जिस भी प्रदेश में जाती है वहाँ की भाषा को सीखने लगती है और उसे ही अपना लेती है। परिणामस्वरूप उस आबादी की मूल भाषा विलुप्त हो जाती है।

जनसंख्याः वैसे तो पूरे विश्व की जनसंख्या बढ़ रही है लेकिन कुछ समुदाय ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या तीव्र गति से घट रही है, इनमें आदिवासी समुदाय प्रमुख हैं। भारत को ही कई आदिवासी समुदाय ऐसे हैं जिनकी आबादी कम हो रही है जैसे जारवा, सेंटेलिज आदि। इसी तरह की स्थिति विश्व स्तर पर भी है खासकर अफ्रीका और कैरेबियन क्षेत्रें में। इनकी आबादी कम होने से इनकी भाषा विलुप्त होती जा रही है क्योंकि उन भाषाओं को बोलने और समझने वाले ये जनजातीय लोग ही हैं।

आधुनिक शिक्षाः वर्तमान में शिक्षा की जो पद्धति है वह भी स्थानीय भाषाओं के लिए हानिकारक साबित हो रही है। शिक्षा का अर्थ अब व्यवसाय हो गया है, जबकि ज्ञानअर्जित करना कम रह गया है। वर्तमान में लोग वही शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं जिससे कि उन्हें रोजगार प्राप्त हो सके और वे अपने को उच्च वर्ग में शामिल कर सकें। इसका परिणाम है कि स्थानीय स्तर पर बोली जाने वाली भाषाओं का प्रचलन धीरे-धीरे कम होता जा रहा है जैसे कि प्राकृत, पाली, संस्कृत, डोगरी आदि। यही कारण है कि इन भाषाओं का प्रभाव कम होते जा रहा है एवं यह विलुप्त होती जा रही है।

अंग्रेजी विकल्प के रूप में: भाषाओं का विलुप्तिकरण केवल भारत का विषय नहीं है बल्कि यह विश्व की समस्या है, जिस तरीके से अंग्रेजी का बोलबाला बढ़ा है उससे कई देशों की स्थानीय भाषाएँ इतिहास बनती जा रही हैं। चूंकि अंग्रेजी तथा अन्य व्यावसायिक भाषाओं का प्रचलन बढ़ा है तथा ये सभी एक विकल्प उपलब्ध करा रही हैं जिससे एक बड़ी आबादी अपनी स्थानीय भाषाओं को छोड़कर इनके तरफ आकर्षित हो रही हैं। यही नहीं अब चाहे गांव हो या शहर हर तरफ व्यावसायिक शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है, लेकिन स्थानीय भाषाओं का विकास तेजी से पीछे होते जा रहा है और ये विलुप्त होती जा रही हैं। इसके अलावा बढ़ता शहरीकरण और औद्योगिकीकरण भी इनके समाप्ति का एक बड़ा कारण है। इसके अलावा वैश्वीकरण के दौर में वैसी भाषा का चुनाव किया जा रहा है जो उनके रोजगार के लिए लाभदायक होता है।

तकनीकी का प्रसारः वर्तमान समय में लोगों के जीवन में जिस तरीके से तकनीकी का बोलबाला बढ़ते जा रहा है उसे देखते हुए स्थानीय भाषाओं को बचा पाना बड़ा मुश्किल कार्य हो गया है। आज के दौर में इंटरनेट जीवन का हिस्सा बनते जा रहा है। चूंकि इंटरनेट का प्रसार व प्रचार स्थानीय भाषाओं में नहीं हो पा रहा जिससे कुछ गिने-चुने भाषा में ही इसका लाभ मिल रहा है। सभी लोग विकास के दौर में आगे बढ़ना चाहते हैं इसलिए वे उन्हीं भाषाओं पर जोर दे रहे हैं जिनसे उन्हें तकनीकी फायदा मिल सके। परिणामस्वरूप स्थानीय भाषा विलुप्त होती जा रही है।

भाषा में क्लिष्टताः किसी भी भाषा के विलुप्त होने की एक वजह उसकी क्लिष्टता भी है। सिंधु घाटी की लिपि आज तक नहीं पढ़ी जा सकी है, जो किसी युग में निश्चय ही जीवंत भाषा रही होगी। जब भी कोई भाषा अपने सहज स्वाभाविक अर्थ को छोड़कर विशेष अर्थ को व्यक्त करने लगती है, तो वह क्लिष्ट बन जाती है और यही क्लिष्टता उसके जनसामान्य से कटने की वजह बनती है। इसी तरह महात्मा बुद्ध और महावीर की भाषा प्राकृत और पाली रही। इन्हीं भाषाओं में उनके लेख व उपदेश भी हैं, जो कि क्लिष्ट होने के कारण आम जन से कट गये। लैटिन, ग्रीक जैसी भाषाएं अपनी क्लिष्टता के कारण अवरुद्ध हो गई।

इसके अलावा इन जनजातीय समुदायों के जीवन में सरकार का भी हस्तक्षेप कम होता है। सरकार इनके भाषाओं को समृद्ध करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाती है जिससे कि ये भाषाएँ विलुप्त हो जाती हैं।

भाषा के संरक्षण की आवश्यकता क्यों?

भारत में एक कहावत है कि ‘कोस-कोस पर पानी बदले और तीन कोस पर वाणी’। अर्थात प्रत्येक एक कोस (3 किमी.) पर पानी की प्रकृति बदल जाती है ठीक इसी प्रकार प्रत्येक तीन कोस पर भाषा बदल जाती है। अतः इसकी महत्ता को समझते हुए विश्व की कोई भी भाषा चाहे वह कितनी भी पुरानी क्यों न हो उसे संरक्षित किया जाना चाहिए।

भाषा किसी भी सभ्यता व संस्कृति तथा उसके रहन-सहन की पहचान होती है। यदि किसी समुदाय की भाषा ही न बचे तो उसके बारे में जानना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव हो जाता है। ईसाइयों और यहूदियों के धर्मग्रन्थों की मूल भाषा हिब्रू थी जो अब इस्तेमाल में नहीं है, इसी तरह पाली, प्राकृत सहित कई भाषाओं ने अपना अस्तित्व खोया है। इन्हें संरक्षित नहीं करने का ही परिणाम है कि इनके मूल ग्रन्थों में क्या कहा गया है यह जानना बड़ा मुश्किल है।

उल्लेखनीय है कि जब किसी भी समुदाय की भाषा को नहीं जाना जाता है तो उस समुदाय के बारे में सही जानकारी भी नहीं मिल पाती है और स्वतंत्र टिप्पणी कर जो लिखते और कहते हैं उन्हें ही सत्य मान लिया जाता है। इसलिए यदि सही अर्थों में किसी संस्कृति की प्रगाढ़ता को समझना है तो उनकी भाषा को समझना और संरक्षित करना अति आवश्यक है।

लोकतंत्र के समुचित विकास के लिए विभिन्न भाषाओं का समृद्ध होना बहुत जरूरी है क्योंकि इन भाषाओं के माध्यम से देश के एक कोने से दूसरे कोने तक की समस्या को आसानी से जाना जा सकता है और उसके निराकरण के लिए कार्य किया जा सकता है। भारत में अभी भी कई ऐसे समुदाय हैं जिनकी भाषा को सही तरीके से समझा नहीं गया है। यदि वे विलुप्त हो जाती हैं तो उनके बारे में जानना असंभव हो जाएगा। अतः इन भाषाओं का संरक्षण आवश्यक है।

किसी भी देश की एकता और अखण्डता के लिए आवश्यक है कि वहाँ के लोग मिल-जुल कर रहें। इसके लिए भाषा सर्वोत्तम माध्यम है ताकि लोग एक दूसरे से जुड़ सकें व अपनी पहचान को बता सकें इसलिए भी भाषाओं को संरक्षित करना आवश्यक है। इससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी प्राप्त होता है।

यदि स्थानीय भाषा को संरक्षण मिलता है तो उन आदिवासी लोगों के अधिकार को भी संरक्षित किया जा सकता है जो अपनी बातों को किसी दूसरे भाषा में नहीं कह पाते है। इससे समाज का समावेशी विकास हो पाता है।

जब स्थानीय भाषा समृद्ध होती है तो उस क्षेत्र में विकास तेज गति से होता है और वहाँ के लोगों को रोजगार प्राप्त होता है जिससे कि शांति स्थापित होती है। इससे देश के विकास में सबका समान रूप से सहयोग प्राप्त होता है।

निष्कर्ष

भाषा जो अपने समाज की प्रतिबिम्ब होती है, यदि वह संरक्षित व सुरक्षित नहीं रहेगी तो प्रतिबिम्ब की कल्पना नहीं की जा सकती है। लुप्त हो रही भाषाओं पर सिर्फ चिंता व्यक्त करने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है बल्कि सरकार को इसके संरक्षण के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए इन भाषाओं को मुख्यधारा में लाना होगा, इन भाषाओं पर रिसर्च करना होगा, स्कूली स्तर पर इन्हें बढ़ावा देना होगा, इन्हें रोजगार परक बनाना होगा, वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए इन्हें तैयार करना होगा तथा इन भाषाओं का सरलीकरण करना होगा आदि के माध्यम से सरकार और समाज दोनों मिलकर स्थानीय भाषाओं को बचा सकते हैं।

यही नहीं आदिवासी समुदाय की उचित जनगणना करके यह पता लगाया जा सकता है कि आदिवासियों की स्थिति क्या है और उनकी भाषाएँ किस हद तक विलुप्ति के कगार पर हैं। यदि किसी भी क्षेत्र की संस्कृति, परिवेश, अस्मिता, खान-पान और रहन-सहन को संरक्षित करना है तो वहाँ की भाषाओं को संरक्षित करना आवश्यक है। इसके लिए सरकार और नागरिकों को आगे आना होगा जिससे कि भाषाएं संवृद्ध और संरक्षित रह सकें।

ह्यूरिस्टिक विधि क्या है?

 ह्यूरिस्टिक विधि क्या है?

(Heuristic Method) ह्यूरिस्टिक विधि एक शिक्षण विधि है। ह्यूरिस्टिक (Heuristic) शब्द यूनानी भाषा के Heurisco से बना है जिसका तात्पर्य है ” मैं स्वयं खोज करता हूं ” इस प्रकार स्पष्ट है कि ह्यूरिस्टिक विधि स्वयं खोज करके या अपने आप सीखने की विधि है।


ह्यूरिस्टिक विधि को अन्वेषण विधि भी कहते हैं।

इस विधि में अध्यापक किसी विषय वस्तु की व्याख्या सीधे ढंग से नहीं करते हैं बल्कि प्रश्नों के द्वारा छात्रों को स्वयं खोजने हेतु बाध्य करता है। ह्यूरिस्टिक विधि में छात्र हमेशा सक्रिय रहते हैं तथा वह नई खोज करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।

इस विधि में छात्र स्वयं करके नए तथ्य एवं गुणों को सीखते हैं। ह्यूरिस्टिक विधि में छात्रों को स्वयं सोचने का अवसर प्रदान किया जाता है।

बर्नार्ड के अनुसार ह्यूरिस्टिक विधि

जहां तक संभव होता है वहां तक यह प्रणाली छात्र को खोजने वाले की स्थिति में रखती है। उसे अपनी आधार सामग्री स्वयं खोज नहीं पड़ती है और अपने प्रश्नों को स्वयं पूछना पड़ता है।इसके पश्चात आगमन की वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करके उसे अपने सिद्धांतों का परीक्षण और अपने निष्कर्षों का निर्माण करना पड़ता है।

ह्यूरिस्टिक विधि गणित शिक्षण में सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध होता है।

ह्यूरिस्टिक विधि के गुण

  • गणितीय शिक्षण में यह विधि काफी उपयोगी साबित होता है क्योंकि यह छात्रों में मनोवैज्ञानिक भावना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का निर्माण करती है।
  • यह विधि तर्क, निर्णय, कल्पना, चिंतन आदि का उपयुक्त अवसर प्रदान करता है जिससे बालक के मानसिक विकास की प्रक्रिया में तीव्रता बनी रहती है।
  • ह्यूरिस्टिक विधि छात्र को ज्ञान की खोज करने की स्थिति में रखती है।
  • यह विधि छात्रों को स्वयं गणित कार्य करने हेतु प्रेरित करती है और उसमें स्वतंत्र अध्ययन और स्वाध्याय की आदत का निर्माण करती है।
  • ह्यूरिस्टिक विधि करके सीखने पर आधारित विधि है।

CTET Math Pedagogy Van Hiele Theory MCQ:

 CTET Math Pedagogy Van Hiele Theory MCQ: केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा के दूसरे चरण का आयोजन 9 जनवरी 2023 से शुरू हो चुका है इस परीक्षा में शामिल अभ्यर्थियों के फीडबैक के अनुसार पेपर का लेबल इजी से मॉडरेट लेवल का है जिसमें पेडगॉजी से जुड़े कई सवाल पूछे जा रहे हैं बेहतर अंक हासिल करने के लिए  एक रणनीति के तहत पढ़ाई पर फोकस बनाए रखना बेहद जरूरी है इस आर्टिकल में हम गणित शिक्षण के अंतर्गत वेन हिले के ज्यामितीय सोच से जुड़े प्रश्नों (CTET Math Pedagogy Van Hiele Theory MCQ) को आपके साथ साझा करने जा रहे हैं, जहां से एक सवाल सभी शिफ्ट में पूछा जा रहा है इसलिए इन्हें एक बार जरूर पढ़ लेवे.

 वैन हिले ज्यामितीय स्तर (Geometric Reasoning)

इस सिद्धांत में इन्होने बताया था की बच्चे Geometry को किस प्रकार सीखते है, इसके लिए उन्होंने 5 stage बताई है।

(1) Level 0- चाक्षुषीकरण (Visualisation) :-

इसमें बच्चे चीजों को सिर्फ जानते है या उन्हें देखकर उनकी image बना लेते है। इसमें बच्चा आकृतियों की दिखावट के according उनका classification कर पाता है।

 ex:- समोसे को देख कर बच्चा उसको त्रिभुज बताता है।

(2) Level 1 – विश्लेषण (analysis) :- इसमें बच्चा shapes का उनके गुणों के आधार पर वर्गीकरण कर पता है। जैसे :- बच्चा वर्ग और आयत में अंतर करना शुरू कर देता है

(3) Level 2- अनौपचारिक निगमन  (informal deduction / relationship) – इसमें बच्चा आकृतियों के बीच relation बनाना स्टार्ट कर देता है उनकी similarity के base पर

(4) Level 3 – औपचारिक (formal/deduction) – इसमें बच्चा आकृतियों (shapes) के formule ढूंढने लगता है।

(5) Level 4 – द्रढ़ता (rigor/axiomatic) – इसमें बच्चा अपने ज्यामितीय चिंतन के according खुद से चीजे बनाता है।

मैथ्स पेडगॉजी में वेन हिले के ज्यामितीय सिद्धांत से पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण सवाल, यहां पढ़िए—CTET Math Pedagogy Van Hiele Theory MCQ

Q. निम्नलिखित में से किसका नाम ज्यामितीय विकास के एक मॉडल से जुड़ा है जो बच्चों की ज्यामितीय तर्क के स्तरों का वर्णन करता है?/ Which among the following names is associated with a model of geometrical development that describes the levels of geometric reasoning in children?

1. जीन पियाजे /Jean Piaget

2. माइकल कॉल/Michael Cole

3. वैन हैले/Van Hieles

4. बी. एफ. स्किनर/BF Skinner

Ans- 3

Q. निम्मलिखित में से कौन सा वैन हैले के ज्यामितीय तर्क के सिद्धांत का चरण / स्तर नही है/Which of the following is NOT a stage / level of Van Hiele theory of geometrical reasoning

1. दृश्यीकरण/Visualization

2. मूर्त संचालन/ Concrete operation

3. विश्लेषण/Analysis

4. स्वयं सिद्ध (अभिग्रहिति)/ Axiomatic

Ans- 2 

Q. एक पांचवीं कक्षा की छात्रा द्विविम आकृतियों का उनके गुणों के आधार पर श्रेणियों में वर्गीकरण कर पाती है। ज्यामितीय विकास की वैन – हेले सिद्धांत के अनुसार, वह छात्रा ज्यामितीय विवेचन के —————-  के स्तर पर है। /A class V student is able to classify two-dimensional shapes into categories based on their properties. According to VanHieles theory of geometrical development, she is at ————— level of  geometrical reasoning

1. विश्लेषण/Analysis

2.स्वयं सिद्ध/Axiomatic

3. अभिज्ञान / पहचानना/Recognition

4. निगमन/Deduction

Ans- 1 

Q. वैन हैले के सिद्धांत के अनुसार ज्यामितीय चिंतन के बारे में सही कथन कथनों का चयन कीजिए। Choose the correct statements about geometrical thinking levels as per VanHieles theory.

a) दृश्यीकरण एक आधारभूत स्तर है।/Visualization is the most basic level

b) निगमन स्तर, विश्लेषण स्तर से पहले आता है।/Deduction level comes before Analysis level

c) संबंध स्तर, विश्लेषण स्तर के बाद आता है।/Relationships level, comes after Analysis level

1. (a) और (b)

2. (a) और (c)

3. (b) और (c)

4. केवल (c)

1. (a) and (b)

2. (a) and (c)

3. (b) and (c)

4. Only (c)

Ans- 2 

Q. एक समोसे को देखकर, एक बच्चा उसे त्रिभुज कहता है। वैन-हैले के ज्यामितीय विकास के सिद्धांत के अनुसार, वह बच्चा ज्यामितीय विवेचन के ————— स्तर पर है।/ On seeing a samosa a child calls it as a triangle. According to Van Hieles theory of geometrical development, the child is at ——————– level of geometric reasoning.

1. दृश्यीकरण/Visualisation

2. संबंध पहचानना/Relationships

3. विश्लेषण/Analysis

4. निगमन/Deduction

Ans- 1 

Q. निम्नलिखित में कौन-सा वैन हैले दवारा दिए गए ज्यामितीय विवेचन के स्तरों की विशेषता का लक्षण नहीं है?/ Which of the following is NOT a characteristic of geometrical reasoning levels as given by Van Hieles? 

1 अनुभव आश्रित/Experience dependent

2. विकासात्मक/Developmental

3. अनुक्रमिक/Sequential

4. आयु आश्रित/Age dependent

Ans- 4 

शिक्षाशास्त्र क्या है?

 

Pedagogy in Hindi – शिक्षाशास्त्र क्या है?

  • Pedagogy का हिंदी में मतलब “शिक्षाशास्त्र” होता है.

  • Pedagogy का तात्पर्य छात्रों (students) को पढ़ाने के तरीके से है.

  • दूसरे शब्दों में कहें तो, “शिक्षाशास्त्र का अर्थ शिक्षा के सिद्धांत और व्यवहार का अध्ययन होता है.”

  • शिक्षा (education) की प्रक्रिया का अच्छे तरीके अध्ययन (study) करना pedagogy कहलाता है. इसमें students को पढ़ाने के तरीकों की study की जाती है.

  • इसमें teacher ऐसे तरीकों के बारें में पढता है जिससे कि किसी भी छात्र को आसानी से समझ आ जाये. हर छात्र एक जैसा नहीं होता किसी को जल्दी समझ में आता है तो किसी को देर में. इसलिए teacher को ऐसे तरीके से पढाना चाहिए जिससे कि सभी students को आसानी से समझ में आये.

  • Pedagogy का मुख्य उद्देश्य छात्रों की skills को बढ़ाना और उनके दृष्टिकोण (attitude) को विकसित करना होता है.

  • शिक्षाशास्त्र के अंदर शिक्षक (teacher) को यह पढाया जाता है कि छात्रों से कैसे बात करनी है क्योंकि अगर शिक्षक और छात्रों के मध्य बात-चीत होती है तो छात्रों को किसी भी सवाल पूछने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती जिससे वो आसानी से सीख पाते हैं.

  • शिक्षाशास्त्र में teacher की जिम्मेदारियों के बारें में भी पढाया जाता है. Teacher की यह जिम्मेदारी होती है कि वह छात्रों को सही जानकारी सही तरीके से दे, चाहें उनका पढ़ाने का style (ढंग) कुछ भी हो।

Importance of Pedagogy in Hindi – शिक्षाशास्त्र का महत्व

इसके महत्व के बारें में नीचे दिया जा रहा है:-

1:- Teaching (शिक्षण) की quality (गुणवत्ता) में सुधार

किसी भी कक्षा में pedagogy का इस्तेमाल करने से शिक्षा की quality (गुणवत्ता) में काफी सुधार होता है. इससे छात्र किसी भी subject (विषय) को आसानी से समझ और सीख पाते हैं.

2:- इससे छात्र एक-दूसरे के साथ पढाई करते हैं

शिक्षाशास्त्र के कारण students आपस में एक दूसरे के साथ मिलकर पढ़ते हैं और किसी भी कार्य को साथ मिलकर पूरा करते हैं. इससे छात्रों को एक दूसरे से सीखने का भी अवसर मिलता है और उनके मध्य सम्बन्ध भी गहरा होता है.

3:- यह नीरस शिक्षा को समाप्त करता है

Pedagogy ऐसी शिक्षा को समाप्त करता है जिसमें रटना होता है और practical कुछ भी नहीं होता. आज के समय में skill (कौशल) पर आधारित शिक्षा की आवश्यकता है।

Pedagogy की वजह से छात्र पढाई के नए तरीके सीखते हैं. क्योंकि नए तरीके से पढाई करने से छात्र का मन पढाई में लगा रहता है और उनका दिमाग भी विचलित नहीं होता.

4:- इससे छात्र अपने तरीके से पढाई करते हैं

Pedagogy छात्र को अपने तरीके से पढाई करने में मदद करता है क्योंकि हर छात्र एक-दूसरे से अलग होता है और हर छात्र अलग-अलग तरीकों से चीजों को सीखता है.

5:- Teacher और student के बीच communication (संचार) में सुधार

शिक्षाशास्त्र शिक्षक और छात्र के बीच बात-चीत में सुधार करता है जिससे teacher छात्र को बेहतर ढंग से समझ पाता है और छात्र की कमजोरियों को पहचान पाता है. इन कमजोरियों पर विजय पाने में मदद करता है।



1:- Social Pedagogy (सामाजिक शिक्षाशास्त्र)

इसका उद्देश्य क्षात्रों का सामाजिक विकास करना, और उनको जागरूक बनाना होता है. इस प्रकार की teaching (शिक्षण) में नैतिक शिक्षा (moral education) शामिल होती है.

2:- Critical Pedagogy (आलोचनात्मक शिक्षाशास्त्र)

इसका उद्देश्य daily life (दैनिक जीवन) की परेशानियों को समझना और उनका समाधान करना होता है. यह छात्र को चीजों को गहराई से देखने और एक विषय पर उनके विचारों और विश्वासों को समझने की कोशिश करने के लिए encourage (प्रोत्साहित) करता है.

3:- Culturally responsive pedagogy (सांस्कृतिक रूप से उत्तरदायी शिक्षाशास्त्र)

इसका उद्देश्य छात्रों के बीच सांस्कृतिक अंतर को समझने में मदद करता है और स्कूल में सांस्कृतिक अंतर के बारें में जागरूकता को बढाता है.

4:- Socratic Pedagogy (सुकराती शिक्षाशास्त्र)

इसका उद्देश्य छात्रों को दूसरे sources (स्रोतों) से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना है. इससे छात्रों को समस्याओं के वैकल्पिक समाधान खोजने में मदद मिलती है।

Principles of Pedagogy in Hindi – शिक्षाशास्त्र के सिद्धांत

इसके वहुत सारें सिद्धांत होते हैं जो कि निम्नलिखित हैं:-

1:- खुद करके सीखने का सिद्धांत

छात्र कोई भी चीज खुद करते हैं तो उन्हें अच्छे से समझ में आता है और वह उसे कभी भी भूलते नहीं है. इसलिए teacher को छात्र को इसे पढाना चाहिए जिससे कि छात्र खुद से करके सीखे.

2:- जीवन के सम्बन्ध का सिद्धांत

कोई भी छात्र अपने life (जीवन) से सम्बन्धित चीजों को आसानी से समझता है. अगर कोई ऐसा topic है जो उनके जीवन से सम्बन्धित नही है तो वह उसे सीखने में कोई interest (रूचि) नही दिखाते. इसलिए teacher को ऐसे topics और तथ्यों को पढाना चाहिए जो छात्रों के जीवन से सम्बन्ध रखता हो.

3:- Purpose (उद्देश्य) का सिद्धांत

छात्र जब तक किसी lesson (अध्याय) का उद्देश्य नहीं जानेंगे तो उन्हें पढने में कोई रूचि नही होगी. अर्थात अगर छात्र को यही नही पता होगा कि इस lesson को पढ़ने का उद्देश्य क्या है तो उन्हें पढने में interest पैदा नही होगा.

इसलिए teacher को प्रत्येक lesson का उद्देश्य बताकर उन्हें पढाना चाहिए.

उदाहरण के लिए – जैसे कि math (गणित) का कोई lesson है तो teacher को यह बताना चाहिए कि math को पढकर वो scientist बन सकते हैं और नए नए अविष्कार कर सकते हैं.

4:- चुनने का सिद्धांत

मनुष्य जीवन बहुत ही छोटा होता है और इस संसार में ज्ञान का अपार भंडार है. इसलिए छात्र को syllabus में उपयोगी lessons (अध्याय) को ही चुनकर रखना चाहिए।

5:- Division (विभाजन) का सिद्धांत

छात्र के सामने पूरे syllabus (पाठ्य-क्रम) को एक साथ प्रस्तुत नही करना चाहिए. पाठ्य-क्रम को बहुत सारें lessons में विभाजित करना चाहिये. विभाजन में पहले basic अध्याय होने चाहिए और फिर advance अध्याय होने चाहिए.

6:- Repetition (पुनरावृत्ति) का सिद्धांत

छात्र को सभी चीजें तभी समझ में आती है जब उसे बार-बार उस चीज के बारें में बताया जाए. इसलिए teacher को एक lesson बार-बार पढ़ाना चाहिए जिससे कि छात्र lesson को समझ पाए.

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