Cdp ctet full notes in hindi

 


विकास की अवधारणा और सीखने के साथ इसका संबंध:-



  • विकास की अवधारणा, मूल रूप से, एक प्रक्रिया या विकास के परिणाम को संदर्भित करती है जो किसी व्यक्ति, संगठन, समाज, या अर्थव्यवस्था में समय के साथ सुधार और प्रगति को दर्शाती है। विकास के विभिन्न पहलू हो सकते हैं, जैसे आर्थिक विकास, सामाजिक विकास, शैक्षिक विकास, और व्यक्तिगत विकास, और ये सभी सीखने की प्रक्रिया से गहराई से जुड़े हुए हैं।

विकास की अवधारणा:

  • विकास एक लंबी, सतत प्रक्रिया है जो जन्म से शुरू होकर व्यक्ति की पूरी जिंदगी तक चलती है।

  • यह मानवीय क्षमताओं और संभावनाओं के विस्तार और उनके संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास से संबंधित है।

  • विकास भौतिक, संज्ञानात्मक, भाषाई, भावनात्मक, और सामाजिक आयामों में होता है।

सीखने की अवधारणा:

  • सीखना अनुभव के माध्यम से ज्ञान, कौशल, व्यवहार, प्रवृत्तियों, या मूल्यों में रिलेटिव परमानेंट परिवर्तन है।

  • यह एक अधिक जानबूझकर और जागरूक प्रक्रिया है जो विशिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निर्देशित होती है।

सीखने की अवधारणा:

  • सीखना अनुभव के माध्यम से ज्ञान, कौशल, व्यवहार, प्रवृत्तियों, या मूल्यों में रिलेटिव परमानेंट परिवर्तन है।

  • यह एक अधिक जानबूझकर और जागरूक प्रक्रिया है जो विशिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निर्देशित होती है।

विकास और सीखने के बीच संबंध:

  • विकास सीखने की नींव प्रदान करता है: व्यक्ति की विकासात्मक स्थिति उसकी सीखने की क्षमता और शैली को प्रभावित करती है। जैसे-जैसे बच्चे विकासात्मक चरणों से गुजरते हैं, उनकी सीखने की क्षमताएँ और तरीके बदलते रहते हैं।

  • सीखना विकास को बढ़ावा देता है: सीखने की प्रक्रिया व्यक्ति के विकास में योगदान देती है, जिससे उनकी मानसिक, भावनात्मक, और सामाजिक क्षमताएँ विकसित होती हैं।

  • सीखने और विकास में व्यक्तिगत अंतर: विभिन्न बच्चों में विकास और सीखने की दर भिन्न होती है, जिससे शिक्षण की योजना और विधियों में व्यक्तिगत अंतर का ध्यान रखना पड़ता है।

  • सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ की भूमिका: विकास और सीखना दोनों ही सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों से प्रभावित होते हैं। विगोत्स्की का सामाजिक सीखने का सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि सामाजिक इंटरैक्शन सीखने और विकास के मुख्य चालक हैं।

  • व्यक्तिगत विकास: सीखने की प्रक्रिया व्यक्तिगत विकास में मौलिक है। नई क्षमताएं, कौशल, और ज्ञान प्राप्त करने से व्यक्ति अधिक सक्षम और अधिक परिपक्व बनता है।

  • आर्थिक विकास: सीखने के अवसरों और शिक्षा के स्तर में सुधार से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है। उच्च शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण से लैस जनसंख्या उच्च उत्पादकता और नवाचार में योगदान कर सकती है, जो अंततः आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देती है।

  • सामाजिक विकास: शिक्षा और सीखने की प्रक्रियाएं सामाजिक विकास को भी प्रोत्साहित करती हैं, जिसमें सामाजिक समरसता, न्याय, और समानता शामिल है। जागरूक और शिक्षित समाज अपने सदस्यों के बीच बेहतर संवाद और समझ को बढ़ावा देता है।

  • शैक्षिक विकास: शैक्षिक प्रणालियों का विकास सीखने की गुणवत्ता और पहुंच को बेहतर बनाता है, जिससे व्यापक सामाजिक और आर्थिक विकास होता है। नवीन शिक्षण मेथड्स और तकनीकों का विकास शिक्षा को अधिक प्रभावी और सुलभ बनाता है।

इस तरह, विकास और सीखने के बीच का संबंध परस्पर निर्भर है। सीखने की प्रक्रियाएं व्यक्तियों और समाजों को विकास की दिशा में आगे बढ़ने के लिए सशक्त बनाती हैं, जबकि विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सीखना अनिवार्य है।


  1. प्रश्न: बच्चों का व्यक्तिगत विकास किस प्रकार से सीखने को प्रभावित कर सकता है?

    1. विभिन्न शिक्षा विधियों का उपयोग करके

    2. परिवार और समाज से मिलने वाले प्रेरक संकेतों के माध्यम से

    3. उनके मनोबल को स्थिर करके

    4. सभी विकल्प

  2. प्रश्न: मनोविज्ञान के सिद्धांतों का सीधा संबंध शिक्षा में कैसे हो सकता है?

    1. शिक्षा मानोविज्ञान के मॉडलों का उपयोग करके

    2. विद्यार्थियों की भावनाओं को समझकर

    3. सीखने के लिए सहायक तकनीकों का उपयोग करके

    4. सभी विकल्प

  3. प्रश्न: शिक्षा में बाल मनोविज्ञान का महत्व क्या है?

    1. विद्यार्थियों के स्वास्थ्य का संरक्षण

    2. विद्यार्थियों के सहयोगी संबंध का प्रशिक्षण

    3. विद्यार्थियों के भावनात्मक विकास का समर्थन

    4. सभी विकल्प

  4. प्रश्न: एक शिक्षक कैसे विभिन्न शिक्षा विधियों का उपयोग करके विद्यार्थियों के संपूर्ण विकास को समर्थन कर सकता है?

    1. विद्यार्थियों के साथ सहयोगपूर्ण गतिविधियों का आयोजन

    2. विशेष आवश्यकताओं के अनुसार विकल्पों का चयन

    3. समृद्धि के माप के माध्यम से प्रगति का मूल्यांकन

    4. सभी विकल्प

  5. प्रश्न: शिक्षा में मनोविज्ञान के तत्वों का सीधा संबंध विकसित करने के लिए शिक्षक कैसे तैयारी कर सकता है?

    1. संबंधित विद्यार्थियों की आवश्यकताओं का समझ

    2. नवीनतम मनोविज्ञान संबंधित अनुसंधान का अध्ययन

    3. सीखने के लिए नए और सहायक उपकरणों का प्रयोग

    4. सभी विकल्प

बाल विकास के सिद्धांत(principles of child development) 



*बाल विकास के सिद्धांत

बाल विकास के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा रहा है


1- निरंतरता का सिद्धांत

  • इस सिद्धांत के अनुसार, विकास 'एक न रुकने वाली' प्रक्रिया है| 

  •  मां के गर्भ से ही यह प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है और मृत्युपर्यंत चलती रहती है।

  •  एक छोटे से नगण्य  आकार से अपना जीवन प्रारंभ करके हम सबके व्यक्तित्व के सभी पक्षों- शारीरिक, मानसिक, सामाजिक आदि का संपूर्ण विकास इसी निरंतरता के गुण के कारण भली-भांति संपन्न कर सकते हैं| 


2- व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत

  • इस सिद्धांत के अनुसार बालकों का विकास और वृद्धि उनकी व्यक्तित्व के अनुरूप होती है|  

  • बच्चे अपनी स्वाभाविक गति से ही वृद्धि और विकास के विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ते रहते हैं और इसी कारण उनमें पर्याप्त विभिन्नताएँ देखने को मिलती है| 

  • किसी के विकास की गति तीव्र और किसी की मंद होती है ।

  • गैसल के अनुसार, "दो व्यक्ति समान नहीं होते, परंतु सभी बालकों के विकास का क्रम समान होता है|" 

  • विकास  के इसी सिद्धांत के कारण कोई बालक अत्यंत मेधावी, कोई बालक सामान्य तथा कोई बालक पिछड़ा या मंद होता है| 


3- विकास क्रम की एकरूपता

  • यह सिद्धांत बताता है कि विकास की गति एक जैसी न होने तथा पर्याप्त व्यैक्तिक  अंतर पाए जाने पर भी विकास क्रम में कुछ एकरूपता के दर्शन होते हैं| 

  • इस क्रम में एक ही जाति विशेष के सभी सदस्यों में कुछ एक जैसी विशेषताएं देखने को मिलती है|

  •   उदाहरण के लिए मनुष्य जाति के सभी बालकों की वृद्धि सिर की ओर से प्रारंभ होती है


4- वृद्धि एवं विकास की गति की दर एक-सी नहीं रहती

  • विकास की प्रक्रिया जीवन-पर्यंत चलती तो है, किंतु इस प्रक्रिया में विकास की गति हमेशा एक जैसी नहीं होती| 

  • शैशवावस्था के शुरू के वर्षों में यह गति तीव्र होती है,परंतु बाद के वर्षों में यह मंद पड़ जाती है| 

  • पुनः किशोरावस्था के प्रारंभ में इस गति में तेजी से वृद्धि होती है,परंतु यह अधिक समय तक नहीं बनी रहती| 


5 - विकास सामान्य से विशेष की ओर चलता है

  • विकास और वृद्धि की सभी दिशाओं में विशिष्ट क्रियाओं से पहले उनके सामान्य रूप के दर्शन होते हैं|  

  • उदाहरण के लिए अपने हाथों से कुछ चीज पकड़ने से पहले बालक इधर से उधर हाथ मारने या फैलाने की कोशिश करता है|  

  • इसी तरह शुरू में एक नवजात शिशु के रोने और चिल्लाने में उसके सभी अंग-प्रत्यंग भाग लेते हैं|

  •  परंतु बाद में वृद्धि और विकास की प्रक्रिया के फलस्वरुप यह क्रियाएं उसकी आंखों और  वाकतंत्र (vocal system ) तक सीमित हो जाती हैं|   


6- परस्पर संबंध का सिद्धांत

  • विकास के सभी आयाम; जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि एक-दूसरे से परस्पर संबंधित हैं| 

  • इनमें से किसी भी एक आयाम में होने वाला विकास अन्य सभी  आयामों में होने वाले विकास को पूरी तरह प्रभावित करने की क्षमता रखता है| 


7-एकीकरण का सिद्धांत

  • इस सिद्धांत के अनुसार बच्चा पहले सम्पूर्ण अंग को, फिर बाद मे विशिष्ट भागों का प्रयोग कर पाता है या अंगों को चलान सीखता है, फिर उन भागो एकीकरण करना सीखता है ।

  •  उदाहरण - देखा जाता है बच्चा पहले अपने पूरे हाथ को हिलाता डुलता है, फिर उसके बाद वह हाथ और उँगलियों को हिलाने का प्रयास करता है ।


8- विकास की दिशा का सिद्धांत

  • इस सिद्धांत के अनुसार, विकास की प्रक्रिया पूर्व निश्चित दिशा में आगे बढ़ती है| इस सिद्धांत को दो भागों में बांटा गया है| 

1.शिर पादाभिमुख  दिशा -    

  • इस सिद्धांत के अंतर्गत विकास सिर से पैर की ओर एक निश्चित दिशा में होता है| 

  • बालक जन्म के कुछ समय पश्चात पहले अपने सिर को नियंत्रित करता है फिर अपने हाथों की गति को पर नियंत्रण करता है तत्पश्चात वह किसी वस्तु को  पकड़ता है, रेंगकर(crawl ) चलता है, फिर खड़ा होकर चलने लगता है| 


2.समीप दुराभिमुख  दिशा       

  •  इस सिद्धांत के अंतर्गत विकास शरीर के केंद्र से शुरू होकर बाहर की ओर होता है| 

  • इसके अंतर्गत सबसे पहले रीढ़  की हड्डी(spinal cord ) का विकास तत्पश्चात अन्य अंगों का विकास होता है।

  •  उदाहरणार्थ रूपा सबसे पहले अपने शरीर पर नियंत्रण करना सीखती  है, फिर अपने हाथ की अंगुलियों पर, फिर अपनी बाहों पर नियंत्रण कर लेती है| 


9- विकास की भविष्यवाणी का सिद्धांत 

  • एक बालक की अपनी वृद्धि और विकास की गति को ध्यान में रखकर उसके आगे बढ़ने की दिशा और स्वरूप के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है| 

  • उदाहरण के लिए, एक बालक की कलाई की हड्डियों  का एक्स किरणों से लिया जाने वाला चित्र यह बता सकता है कि उसका
    आकार-प्रकार आगे जाकर किस प्रकार का होगा? इसी तरह बालक की इस समय की मानसिक योग्यताओं के ज्ञान के सहारे उसके आगे के मानसिक विकास के बारे में पूर्वानुमान(prediction ) लगाया जा सकता है| 


10- विकास लंबवत सीधा न होकर वर्तुलाकार होता है


  • बालक का विकास लंबवत सीधा न होकर वर्तुलाकार  होता है| 

  • वह एक-सी गति से सीधा चलकर विकास को प्राप्त नहीं होता,बल्कि बढ़ते हुए पीछे हटकर अपने विकास को परिपक्व और स्थायी  बनाते हुए वर्तुलाकार  आकृति की तरह आगे बढ़ता है| 

11- वृद्धि और विकास की क्रिया वंशानुक्रम और वातावरण का संयुक्त परिणाम है

  • बालक की वृद्धि और विकास को किसी स्तर पर वंशानुक्रम और वातावरण की संयुक्त देन माना जाता है| 

  • दूसरे शब्दों में ,वृद्धि और विकास की प्रक्रिया में वंशानुक्रम जहां आधार का कार्य करता है,वहां वातावरण इस आधार पर बनाए जाने वाले व्यक्तित्व संबंधी भवन के लिए आवश्यक सामग्री एवं वातावरण जुटाने में सहयोग देता है| 



विकास की अवधारणा और सीखने के साथ इसका संबंध:-



  • विकास की अवधारणा, मूल रूप से, एक प्रक्रिया या विकास के परिणाम को संदर्भित करती है जो किसी व्यक्ति, संगठन, समाज, या अर्थव्यवस्था में समय के साथ सुधार और प्रगति को दर्शाती है। विकास के विभिन्न पहलू हो सकते हैं, जैसे आर्थिक विकास, सामाजिक विकास, शैक्षिक विकास, और व्यक्तिगत विकास, और ये सभी सीखने की प्रक्रिया से गहराई से जुड़े हुए हैं।

विकास की अवधारणा:

  • विकास एक लंबी, सतत प्रक्रिया है जो जन्म से शुरू होकर व्यक्ति की पूरी जिंदगी तक चलती है।

  • यह मानवीय क्षमताओं और संभावनाओं के विस्तार और उनके संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास से संबंधित है।

  • विकास भौतिक, संज्ञानात्मक, भाषाई, भावनात्मक, और सामाजिक आयामों में होता है।

सीखने की अवधारणा:

  • सीखना अनुभव के माध्यम से ज्ञान, कौशल, व्यवहार, प्रवृत्तियों, या मूल्यों में रिलेटिव परमानेंट परिवर्तन है।

  • यह एक अधिक जानबूझकर और जागरूक प्रक्रिया है जो विशिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निर्देशित होती है।

सीखने की अवधारणा:

  • सीखना अनुभव के माध्यम से ज्ञान, कौशल, व्यवहार, प्रवृत्तियों, या मूल्यों में रिलेटिव परमानेंट परिवर्तन है।

  • यह एक अधिक जानबूझकर और जागरूक प्रक्रिया है जो विशिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निर्देशित होती है।

विकास और सीखने के बीच संबंध:

  • विकास सीखने की नींव प्रदान करता है: व्यक्ति की विकासात्मक स्थिति उसकी सीखने की क्षमता और शैली को प्रभावित करती है। जैसे-जैसे बच्चे विकासात्मक चरणों से गुजरते हैं, उनकी सीखने की क्षमताएँ और तरीके बदलते रहते हैं।

  • सीखना विकास को बढ़ावा देता है: सीखने की प्रक्रिया व्यक्ति के विकास में योगदान देती है, जिससे उनकी मानसिक, भावनात्मक, और सामाजिक क्षमताएँ विकसित होती हैं।

  • सीखने और विकास में व्यक्तिगत अंतर: विभिन्न बच्चों में विकास और सीखने की दर भिन्न होती है, जिससे शिक्षण की योजना और विधियों में व्यक्तिगत अंतर का ध्यान रखना पड़ता है।

  • सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ की भूमिका: विकास और सीखना दोनों ही सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों से प्रभावित होते हैं। विगोत्स्की का सामाजिक सीखने का सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि सामाजिक इंटरैक्शन सीखने और विकास के मुख्य चालक हैं।

  • व्यक्तिगत विकास: सीखने की प्रक्रिया व्यक्तिगत विकास में मौलिक है। नई क्षमताएं, कौशल, और ज्ञान प्राप्त करने से व्यक्ति अधिक सक्षम और अधिक परिपक्व बनता है।

  • आर्थिक विकास: सीखने के अवसरों और शिक्षा के स्तर में सुधार से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है। उच्च शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण से लैस जनसंख्या उच्च उत्पादकता और नवाचार में योगदान कर सकती है, जो अंततः आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देती है।

  • सामाजिक विकास: शिक्षा और सीखने की प्रक्रियाएं सामाजिक विकास को भी प्रोत्साहित करती हैं, जिसमें सामाजिक समरसता, न्याय, और समानता शामिल है। जागरूक और शिक्षित समाज अपने सदस्यों के बीच बेहतर संवाद और समझ को बढ़ावा देता है।

  • शैक्षिक विकास: शैक्षिक प्रणालियों का विकास सीखने की गुणवत्ता और पहुंच को बेहतर बनाता है, जिससे व्यापक सामाजिक और आर्थिक विकास होता है। नवीन शिक्षण मेथड्स और तकनीकों का विकास शिक्षा को अधिक प्रभावी और सुलभ बनाता है।

इस तरह, विकास और सीखने के बीच का संबंध परस्पर निर्भर है। सीखने की प्रक्रियाएं व्यक्तियों और समाजों को विकास की दिशा में आगे बढ़ने के लिए सशक्त बनाती हैं, जबकि विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सीखना अनिवार्य है।


  1. प्रश्न: बच्चों का व्यक्तिगत विकास किस प्रकार से सीखने को प्रभावित कर सकता है?

    1. विभिन्न शिक्षा विधियों का उपयोग करके

    2. परिवार और समाज से मिलने वाले प्रेरक संकेतों के माध्यम से

    3. उनके मनोबल को स्थिर करके

    4. सभी विकल्प

  2. प्रश्न: मनोविज्ञान के सिद्धांतों का सीधा संबंध शिक्षा में कैसे हो सकता है?

    1. शिक्षा मानोविज्ञान के मॉडलों का उपयोग करके

    2. विद्यार्थियों की भावनाओं को समझकर

    3. सीखने के लिए सहायक तकनीकों का उपयोग करके

    4. सभी विकल्प

  3. प्रश्न: शिक्षा में बाल मनोविज्ञान का महत्व क्या है?

    1. विद्यार्थियों के स्वास्थ्य का संरक्षण

    2. विद्यार्थियों के सहयोगी संबंध का प्रशिक्षण

    3. विद्यार्थियों के भावनात्मक विकास का समर्थन

    4. सभी विकल्प

  4. प्रश्न: एक शिक्षक कैसे विभिन्न शिक्षा विधियों का उपयोग करके विद्यार्थियों के संपूर्ण विकास को समर्थन कर सकता है?

    1. विद्यार्थियों के साथ सहयोगपूर्ण गतिविधियों का आयोजन

    2. विशेष आवश्यकताओं के अनुसार विकल्पों का चयन

    3. समृद्धि के माप के माध्यम से प्रगति का मूल्यांकन

    4. सभी विकल्प

  5. प्रश्न: शिक्षा में मनोविज्ञान के तत्वों का सीधा संबंध विकसित करने के लिए शिक्षक कैसे तैयारी कर सकता है?

    1. संबंधित विद्यार्थियों की आवश्यकताओं का समझ

    2. नवीनतम मनोविज्ञान संबंधित अनुसंधान का अध्ययन

    3. सीखने के लिए नए और सहायक उपकरणों का प्रयोग

    4. सभी विकल्प

बाल विकास के सिद्धांत(principles of child development) 



*बाल विकास के सिद्धांत

बाल विकास के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा रहा है


1- निरंतरता का सिद्धांत

  • इस सिद्धांत के अनुसार, विकास 'एक न रुकने वाली' प्रक्रिया है| 

  •  मां के गर्भ से ही यह प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है और मृत्युपर्यंत चलती रहती है।

  •  एक छोटे से नगण्य  आकार से अपना जीवन प्रारंभ करके हम सबके व्यक्तित्व के सभी पक्षों- शारीरिक, मानसिक, सामाजिक आदि का संपूर्ण विकास इसी निरंतरता के गुण के कारण भली-भांति संपन्न कर सकते हैं| 


2- व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत

  • इस सिद्धांत के अनुसार बालकों का विकास और वृद्धि उनकी व्यक्तित्व के अनुरूप होती है|  

  • बच्चे अपनी स्वाभाविक गति से ही वृद्धि और विकास के विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ते रहते हैं और इसी कारण उनमें पर्याप्त विभिन्नताएँ देखने को मिलती है| 

  • किसी के विकास की गति तीव्र और किसी की मंद होती है ।

  • गैसल के अनुसार, "दो व्यक्ति समान नहीं होते, परंतु सभी बालकों के विकास का क्रम समान होता है|" 

  • विकास  के इसी सिद्धांत के कारण कोई बालक अत्यंत मेधावी, कोई बालक सामान्य तथा कोई बालक पिछड़ा या मंद होता है| 


3- विकास क्रम की एकरूपता

  • यह सिद्धांत बताता है कि विकास की गति एक जैसी न होने तथा पर्याप्त व्यैक्तिक  अंतर पाए जाने पर भी विकास क्रम में कुछ एकरूपता के दर्शन होते हैं| 

  • इस क्रम में एक ही जाति विशेष के सभी सदस्यों में कुछ एक जैसी विशेषताएं देखने को मिलती है|

  •   उदाहरण के लिए मनुष्य जाति के सभी बालकों की वृद्धि सिर की ओर से प्रारंभ होती है


4- वृद्धि एवं विकास की गति की दर एक-सी नहीं रहती

  • विकास की प्रक्रिया जीवन-पर्यंत चलती तो है, किंतु इस प्रक्रिया में विकास की गति हमेशा एक जैसी नहीं होती| 

  • शैशवावस्था के शुरू के वर्षों में यह गति तीव्र होती है,परंतु बाद के वर्षों में यह मंद पड़ जाती है| 

  • पुनः किशोरावस्था के प्रारंभ में इस गति में तेजी से वृद्धि होती है,परंतु यह अधिक समय तक नहीं बनी रहती| 


5 - विकास सामान्य से विशेष की ओर चलता है

  • विकास और वृद्धि की सभी दिशाओं में विशिष्ट क्रियाओं से पहले उनके सामान्य रूप के दर्शन होते हैं|  

  • उदाहरण के लिए अपने हाथों से कुछ चीज पकड़ने से पहले बालक इधर से उधर हाथ मारने या फैलाने की कोशिश करता है|  

  • इसी तरह शुरू में एक नवजात शिशु के रोने और चिल्लाने में उसके सभी अंग-प्रत्यंग भाग लेते हैं|

  •  परंतु बाद में वृद्धि और विकास की प्रक्रिया के फलस्वरुप यह क्रियाएं उसकी आंखों और  वाकतंत्र (vocal system ) तक सीमित हो जाती हैं|   


6- परस्पर संबंध का सिद्धांत

  • विकास के सभी आयाम; जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि एक-दूसरे से परस्पर संबंधित हैं| 

  • इनमें से किसी भी एक आयाम में होने वाला विकास अन्य सभी  आयामों में होने वाले विकास को पूरी तरह प्रभावित करने की क्षमता रखता है| 


7-एकीकरण का सिद्धांत

  • इस सिद्धांत के अनुसार बच्चा पहले सम्पूर्ण अंग को, फिर बाद मे विशिष्ट भागों का प्रयोग कर पाता है या अंगों को चलान सीखता है, फिर उन भागो एकीकरण करना सीखता है ।

  •  उदाहरण - देखा जाता है बच्चा पहले अपने पूरे हाथ को हिलाता डुलता है, फिर उसके बाद वह हाथ और उँगलियों को हिलाने का प्रयास करता है ।


8- विकास की दिशा का सिद्धांत

  • इस सिद्धांत के अनुसार, विकास की प्रक्रिया पूर्व निश्चित दिशा में आगे बढ़ती है| इस सिद्धांत को दो भागों में बांटा गया है| 

1.शिर पादाभिमुख  दिशा -    

  • इस सिद्धांत के अंतर्गत विकास सिर से पैर की ओर एक निश्चित दिशा में होता है| 

  • बालक जन्म के कुछ समय पश्चात पहले अपने सिर को नियंत्रित करता है फिर अपने हाथों की गति को पर नियंत्रण करता है तत्पश्चात वह किसी वस्तु को  पकड़ता है, रेंगकर(crawl ) चलता है, फिर खड़ा होकर चलने लगता है| 


2.समीप दुराभिमुख  दिशा       

  •  इस सिद्धांत के अंतर्गत विकास शरीर के केंद्र से शुरू होकर बाहर की ओर होता है| 

  • इसके अंतर्गत सबसे पहले रीढ़  की हड्डी(spinal cord ) का विकास तत्पश्चात अन्य अंगों का विकास होता है।

  •  उदाहरणार्थ रूपा सबसे पहले अपने शरीर पर नियंत्रण करना सीखती  है, फिर अपने हाथ की अंगुलियों पर, फिर अपनी बाहों पर नियंत्रण कर लेती है| 


9- विकास की भविष्यवाणी का सिद्धांत 

  • एक बालक की अपनी वृद्धि और विकास की गति को ध्यान में रखकर उसके आगे बढ़ने की दिशा और स्वरूप के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है| 

  • उदाहरण के लिए, एक बालक की कलाई की हड्डियों  का एक्स किरणों से लिया जाने वाला चित्र यह बता सकता है कि उसका
    आकार-प्रकार आगे जाकर किस प्रकार का होगा? इसी तरह बालक की इस समय की मानसिक योग्यताओं के ज्ञान के सहारे उसके आगे के मानसिक विकास के बारे में पूर्वानुमान(prediction ) लगाया जा सकता है| 


10- विकास लंबवत सीधा न होकर वर्तुलाकार होता है


  • बालक का विकास लंबवत सीधा न होकर वर्तुलाकार  होता है| 

  • वह एक-सी गति से सीधा चलकर विकास को प्राप्त नहीं होता,बल्कि बढ़ते हुए पीछे हटकर अपने विकास को परिपक्व और स्थायी  बनाते हुए वर्तुलाकार  आकृति की तरह आगे बढ़ता है| 

11- वृद्धि और विकास की क्रिया वंशानुक्रम और वातावरण का संयुक्त परिणाम है

  • बालक की वृद्धि और विकास को किसी स्तर पर वंशानुक्रम और वातावरण की inसंयुक्त देन माना जाता है| 

  • दूसरे शब्दों में ,वृद्धि और विकास की प्रक्रिया में वंशानुक्रम जहां आधार का कार्य करता है,वहां वातावरण इस आधार पर बनाए जाने वाले व्यक्तित्व संबंधी भवन के लिए आवश्यक सामग्री एवं वातावरण जुटाने में सहयोग देता है| 



निश्चित रूप से! यहाँ कुछ बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) दिए जा रहे हैं जो बाल विकास के सिद्धांतों से संबंधित हैं:

बाल विकास में सामान्यीकरण का सिद्धांत कहता है कि:

A) हर बच्चा अलग होता है

B) बच्चों का विकास एक समान क्रम में होता है

C) बच्चों का विकास केवल परिवेश के कारण होता है

  1. D) बच्चे कभी नहीं बदलते

बाल विकास में निरंतरता का सिद्धांत बताता है कि:

A) विकास में बड़े बदलाव अचानक होते हैं

B) विकास धीरे-धीरे और सतत् रूप से होता है

C) विकास केवल प्रारंभिक वर्षों में होता है

  1. D) बच्चे केवल शैक्षिक अनुभवों के माध्यम से विकसित होते हैं

बच्चों के विकास में संवेदनशील अवधियों का सिद्धांत किसे दर्शाता है?

A) ऐसे समय को जब बच्चे किसी विशेष कौशल या अवधारणा को सीखने के लिए सबसे अधिक प्रतिक्रियाशील होते हैं

B) वह अवधि जब बच्चे शारीरिक रूप से सबसे अधिक विकसित होते हैं

C) वह समय जब बच्चे भावनात्मक विकास के लिए सबसे संवेदनशील होते हैं

  1. D) उपरोक्त सभी

विकासात्मक क्रम का सिद्धांत क्या कहता है?

A) बच्चे विकास के लिए एक निश्चित क्रम का पालन करते हैं

B) बच्चों का विकास अनियमित और यादृच्छिक होता है

C) बच्चे केवल भौतिक वातावरण से प्रभावित होते हैं

  1. D) बच्चे केवल सामाजिक वातावरण से प्रभावित होते हैं

पियाजे के अनुसार, बच्चे ज्ञान का निर्माण कैसे करते हैं?

A) अनुकरण के माध्यम से

B) सक्रिय अन्वेषण और अनुभव के माध्यम से

C) याद करने के माध्यम से

  1. D) केवल पुस्तकों के अध्ययन के माध्यम से

सही उत्तर हैं:

  1. B) बच्चों का विकास एक समान क्रम में होता है

  2. B) विकास धीरे-धीरे और सतत् रूप से होता है

  3. A) ऐसे समय को जब बच्चे किसी विशेष कौशल या अवधारणा को सीखने के लिए सबसे अधिक प्रतिक्रियाशील होते हैं

  4. A) बच्चे विकास के लिए एक निश्चित क्रम का पालन करते हैं

  5. B) सक्रिय अन्वेषण और अनुभव के माध्यम


आनुवंशिकता और पर्यावरण का प्रभाव ( The impact of genetics and environment ):


आनुवंशिकता और पर्यावरण दोनों ही एक व्यक्ति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनका प्रभाव न केवल शारीरिक लक्षणों पर पड़ता है, बल्कि व्यक्तित्व, बुद्धिमत्ता, भावनाओं, और सामाजिक व्यवहार पर भी पड़ता है। नीचे आनुवंशिकता और पर्यावरण के प्रभाव पर कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं:

वृद्धि और विकास पर आनुवंशिकता और पर्यावरण का प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण है। 

आनुवंशिकता (Genetics) का प्रभाव:

  1. शारीरिक विकास: आनुवंशिक गुणों के माध्यम से शारीरिक विकास पर प्रभाव पड़ता है, जैसे कि ऊंचाई, रंग, रोग प्रतिरोध, और अन्य शारीरिक विशेषताएं।

  2. मानसिक विकास: मानसिक स्वास्थ्य और व्यक्तित्व के विकास में भी आनुवंशिकता का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

  3. प्रजनन क्षमता: आनुवंशिकता भी प्रजनन क्षमता और उत्पादन के प्रति प्रभाव डालती है।

पर्यावरण (Environment) का प्रभाव:

  1. शिक्षा: शिक्षा, स्कूली वातावरण, और शैक्षिक संसाधनों की उपलब्धता विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

  2. सामाजिक परिवेश: समाज में व्यक्ति के संघर्ष, संबंध, और सामाजिक संपर्कों का भी विकास पर असर होता है।

  3. आर्थिक स्थिति: आर्थिक स्थिति भी विकास पर असर डालती है, जैसे कि अधिकार, संसाधनों की उपलब्धता, और आय का स्तर।

  4. स्वास्थ्य: स्वच्छता, पोषण, और आराम के आवासीय स्थान का प्रभाव विकास पर होता है।

आनुवंशिकता और पर्यावरण का एकीकरण:

  1. संघर्ष और समाधान: आनुवंशिकता और पर्यावरण के मिश्रण में विकल्प और समाधान ढूंढना आवश्यक होता है।

  2. संवेदनशीलता: विकास के लिए संवेदनशीलता की जरूरत होती है, जिसमें आनुवंशिकता और पर्यावरण दोनों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

इस प्रकार, आनुवंशिकता और पर्यावरण का मिश्रण व्यक्ति के विकास और वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


आनुवंशिकता और पर्यावरण के सापेक्ष प्रभाव विकास के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न होते हैं क्योंकि:

  • सभी मानसिक और सामाजिक लक्षण पर्यावरण पर निर्भर करते हैं।

  • सभी जन्मजात लक्षण, प्रवृत्ति, और बुद्धि-लब्धि आनुवंशिकता पर निर्भर करते है।

  • विकास और वृद्धि के लिए सभी संभावित परिणाम आनुवंशिकता पर निर्भर करते हैं।

  • दोनों व्यक्ति के जीवन को आकार देने में एक दूसरे के पूरक हैं।

  • किसी व्यक्ति का विकास कैसे होगा यह पर्यावरण पर निर्भर करता है लेकिन व्यक्ति कितनी दूर तक विकसित हो सकता है यह आनुवंशिकता पर निर्भर करता है।

  • आनुवंशिकता IQ पर सीमित होती है और पर्यावरण इन सीमाओं के भीतर IQ की संख्यात्मक स्थिति निर्धारित करता है।

समाजीकरण प्रक्रियाएं : सामाजिक दुनिया और बच्चे (शिक्षक, माता पीता और बच्चे) :









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