डी. एल. एड. (D. EL.ED.)
F-1
समाज, शिक्षा और पाठ्यचर्या की समझ
इकाई-1
प्रथम वर्ष
बच्चे, बचपन और समाज
बच्चे और बचपन सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक समझ
- बच्चे,बचपन और समाजीकरण के मूल संकल्पना समय तथा स्थान के अनुसार निरंतर विकसित होती रही है।
- प्रत्येक परिवार, समुदाय एवं समाज मैं बच्चे तथा बचपन एवं उनके सामाजिकरण को भिन्न भिन्न नजरियों से देखते हैं तथा विभिन्न तरीकों एवं साधनों से उनके विकास की व्यवस्था कि वह एक नियामक और अपरिहार्य इकाई है।
- बचपन मात्रा जैविक निर्मित ही नहीं होता बल्कि और सामाजिक,संस्कृति एवं राजनैतिक निर्मित भी होता है।
- समाज अपनी विभिन्न गतिविधियों पर क्रियाओं के माध्यम से व्यक्तियों के समाजीकरण की व्यवस्था करता है।
- आधुनिक सामाजिकरण व्यवस्थापन एवं नियमन में माता-पिता परिवार पढ़ो समुदाय मीडिया तथा विद्यालय आदि की महत्वपूर्ण भूमिका है।
- बच्चा एक सामाजिक सांस्कृतिक इकाई होता है।
- हॉट सामाजिक सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में बच्चे और बचपन को अलग-अलग नजरिए से देखा जाता है।
- प्रत्येक जाति धर्म व परंपरा में बच्चे तथा बचपन की समझ अलग अलग है।
- जाति धर्म आर्थिक व सामाजिक स्थिति आदि के आधार पर बच्चे वह बचपन को देखने के हमारे नजरिए को प्रभावित करते हैं।
- उच्च वर्ग के बच्चों का पालन पोषण अधिक प्यार एवं सुरक्षा के माहौल में होता है।
- बच्चों के देखभाल के लिए वांछित सुख सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है।
- बच्चों को जातीय संस्कारों एवं सामाजिक संबंधों को सिखाया जाता है।
- इसमें यह भी जानना जरूरी है कि बच्चा लड़का है या लड़की दोनों के लालन-पालन में बहुत अंतर होता है।
- आज भी लोग लड़कियों की अपेक्षा लड़कों का बेहतर तरीके से लालन-पालन करते हैं।
- बचपन के ऐतिहासिक समझ यह बताती है कि विश्व की कई प्राचीन सभ्यताओं में भी बाल्यावस्था और किशोरावस्था के बीच के समय को बचपन माना जाता है।
- प्रसिद्ध इतिहासकार फिलीप एरीस के अनुसार प्राचीन मानवीय समाजों में बच्चे को एक स्वतंत्र सामाजिक मानव शास्त्रीय श्रेणी में नहीं रखा जाता था।
- मध्यकालीन समाज जहां एक ओर पढ़ाया बच्चों को उनके पिता या अभिभावक के नियंत्रण एवं सत्ता के अधीन रखने के पक्ष में था।
- वहीं दूसरी ओर पारंपरिक भारतीय दृष्टिकोण बच्चों को दया,करुणा, अहिंसा इत्यादि का अधिकारी मानते हुए उनमें आत्मानुशासन, आज्ञाकारीता, निश्छलता इत्यादि गुणों को आवश्यक मानते थे।
बच्चे तथा बचपन सामाजिक, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक समझ । > समाजीकरण की समझ अवधारणा कारक तथा विविध संदर्भ
A बच्चों का समाजीकरण माता-पिता, परिवार, पड़ोस, जेण्डर एवं समुदाय की भूमिका । बाल अधिकारों का संदर्भ : उपेक्षित वर्गों से आने वाले बच्चों पर विशेष चर्चा के साथ।
इकाई-2
विद्यालय और समाजीकरण
> शिक्षा, विद्यालय और समाज : अंतर्सम्बंधों की समझ । विद्यालय में समाजीकरण की प्रक्रिया : विभिन्न कारकों की भूमिका व प्रभावों की समझ ।
शिक्षा, शिक्षण तथा विद्यालय सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनीतिक आधार ।
: शिक्षा और ज्ञान: विविध परिप्रेक्ष्यों की समझ इकाई 3
शिक्षा : सामान्य अवधारणा, उद्देश्य एवं विद्यालयी शिक्षा की प्रकृति ।
शिक्षा को समझने के विभिन्न आधार/दृष्टिकोण: दर्शनशास्त्रीय, मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्रीय, शिक्षा का साहित्य, शिक्षा का इतिहास, आदि।
ज्ञान की अवधारणा दार्शनिक परिप्रेक्ष्य |
ज्ञान के विविध स्वरूप एवं अर्जन के तरीके।
इकाई -4
प्रमुख चिंतकों के मौलिक लेखन की शिक्षाशास्त्रीय समझ
महात्मा गाँधी - हिन्द स्वराज : सामाजिक दर्शन और शिक्षा के संबंध को रेखांकित करते हुए।
गिजुभाई बधेका - दिवास्वप्न शिक्षा में प्रयोग के विचार को रेखांकित करते हुए ।
> रवीन्द्रनाथ टैगोर शिक्षा सीखने में स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता की भूमिका को रेखांकित
करते हुए।
> मारिया माटेसरी ग्रहणशील मन पुस्तक से 'विकास के क्रम' शीर्षक अध्याय: के सीखने के सम्बन्ध में विशेष पद्धति को रेखांकित करते हुए ।
बच्चों
> ज्योतिबा फुले- हंटर आयोग (1882) को दिया गया बयान : शैक्षिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक असमानता को रेखांकित करते हुए।
> डॉ जाकिर हुसैन शैक्षिक लेख : बालकेन्द्रित शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए।
> जे कृष्णमूर्ति - 'शिक्षा क्या है' : सीखने-सिखाने में संवाद की भूमिका को रेखांकित
करते हुए।
> जॉन डीवी-शिक्षा और लोकतंत्र से 'जीवन की आवश्यकता के रूप में शिक्षा' शीर्षक लेख : शिक्षा और समाज की अंतक्रिया को रेखांकित करते हुए।
बच्चे तथा बचपन :- सामाजिक, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य :- बच्चे,बचपन और सामाजिकरण की मूल संकल्पना